हेलो दोस्तों आज हम बात करने वाले है। एक ऐसे कलमकार की जिसकी कविता आपने भी पढ़ी होगी। वेदप्रकाश ‘ वेदान्त ‘ जो एक अच्छे कलमकार होने के साथ – साथ एक अच्छे इंसान भी है। वेदप्रकाश जी ने अपनी कई सारी कविता लिखी है। जिनमें से एक कविता स्रोताओं को बेहद पसंद है “गरीबी पर कविता”
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Poem on Poverty in Hindi
हालात इंसान को गरीब बना देते है इस आधुनिक दुनिया में हर गरीब इंसान की एक तमन्ना होती है उसका भी अपना घर हो , जिससे वो इंसान अपने परिवार का पेट पाल सके उन्हें वो सारी खुशियाँ दे सके। जो एक घर के मुख्य सदस्ये को देनी चाहिए। ये सच है की हमारे समाज में गरीब इंसान की इज़्ज़त बहुत कम होती है। क्योंकि अगर इंसान पर पैसा है तो ये दुनिया उसे पूछेगी अगर नहीं है तो उसके अपने भी उससे दूर भागने लगते है। अमीर इंसान पैसा खर्च करते वक़्त बिलकुल नहीं सोचता है। लेकिन जब ये बात एक गरीब पर आती है तो उस वक़्त उसे अपने बारे में सोचने के साथ – साथ अपने परिवार के बारे भी सोचना पड़ता है।
निकलों अमीरों कस्बों से बाहर,
बनते हो चहारदीवारी में नाहर,
मलिन बस्तियों में सफ़र तो करो
इंसान हो इंसानियत में बसर तो करो.
मैले कपडों में बच्चों का तन पल रहा
भूख से व्याकुल उसका मन जल रहा
चंद पैसों के लिए वो मीलो चल रहा
संकट में उसका आज और कल पल रहा
आगे बढ़कर देखो उस छप्पर के नीचे
बारिश के पानी से घर भर रहा.
गरीबी पर कविताएं
देखो उसके घर रोना पिटना पड़ा है,
तंगी में हरिया जहर खाने पे अड़ा है,
उसका इकलौता बेटा बीमार है बहुत
पैसे ने उसके जीवन पर ताला जड़ा है.
गरीबी मिटाने का नारा लगाते बहुत हो,
बस अखबारों में रहम जताते बहुत हो,
ये किस्मत के मारे यहीं के यहीं हैं
नाम कमाने के दिन ही खिलाते बहुत हो.
निकलों अमीरों कस्बों से बाहर,
बनते हो चहारदीवारी में नाहर,
मलिन बस्तियों में सफ़र तो करो
इंसान हो इंसानियत में बसर तो करो.
कवि और लेखक – वेद प्रकाश “वेदान्त”
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
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Poverty poems by famous poets
जो घर का मुख्या होता है उसके ऊपर बहुत सारी जिम्मेदारियाँ होती है। एक गरीब व्यक्ति शुरुआत से ही मेहनती होता है। कभी – कभी तो एक इंसान के ऊपर इतनी जिम्मेदारी होती है के, वो व्यक्ति पढ़ भी नहीं पाता है। कम कमाई होने के कारण कभी- कभी तो घर में दो वक़्त की रोटी के लिए भी पैसे नहीं होते है, और एक अमीर आदमी खाने की वैल्यू तक भी नहीं करता है इनका व्यवहार भी गरीब के प्रति बड़ा बेकार होता है। क्योंकि जिस इंसान को उसके घर में माँ -पाप ने सारे सुख दिए हो उसे पैसे की कीमत का क्या पता। इन्हे सबकुछ पकापक्या मिल जाती है इन्हे न तो अपने पेरेंट्स की वैल्यू होती है न ही किसी इंसान की, इस दुनिया में दिखावा चलता है अगर आपके कपड़े अच्छे है तो आप अच्छे इंसान हो अगर नहीं है तो नहीं।
देखो उस खाट पर लेटी है बुढ़िया
तकिये के नीचे रखी नीली पीली है पुड़िया
चारो तरफ़ लूटमार मची है
उसके पास पैसों की बेबसी है
किसी डॉक्टर को दिखाए
तो कैसे दिखाए
इतनी मंहगी फ़ीस भला
कहाँ से जुटाए.
कोई रहम जताने वाला कहाँ हैं
इंसानियत पे चलने वाला कहाँ है
चलो अब और आगे बढ़ो
देखो रघुवा को पढ़ने की
कितनी ललक है
किताबों में तल्लीन
उसकी पलक है
इतनी रात गए
दीपक जलाए बैठा है
मुझको तो दिखता उसमें
कलाम की झलक है.
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गरीबी पर छोटी कविता
आओ अब रघुनी की
रसोई तो निहारो
कैसे कट रहा दिन
तनिक मन में विचारों
दो वक्त की रोटी भी
मुश्किल से जुट रही है
इनकी मेहनत से ही
बनता मकान तिहारो.
वो देखो करमू अभी भी जगा है,
मिट्टी की मूरत बनाने में लगा है,
जिस मूरत में हम ईश्वर देखते
उसे सस्ते दामों में लेकर
हमने उसको ठगा है.
गरीबी इंसान को ऐसे काम करने पर भी मजबूर कर देती है जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं होता है। इनका पूरा जीवन त्याग में चला जाता है, लेकिन ये कभी अपने जीवन में हिम्मत नहीं हारते है हर मुश्किल का सब डट कर सामना करते है। गरीब घर के बच्चे बहुत मेहनती होते है, और इनके जीवन में समय की कीमत बहुत होती है। बहुत सारी कठिनाइयों का सामने करके ये अपने जीवन में सफल होते है। इन सारी बातो का वेदप्रकाश जी ने अपनी कलम से अपने विचार व्यक्त किये है।
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