Utpanna Ekadashi 2019: हिन्दू धर्म में कई तीज त्यौहार है जिनका काफी महत्व है इन्ही में से एक उत्पन्ना एकादशी। हिन्दू धर्म की पौराणिक कथा के अनुसार उत्पन्ना एकादशी के दिन ही एकादशी माता का जन्म हुआ था, यही वजह है की इस एकादशी का हिन्दू धर्म में काफी महत्व है। ऐसी मान्यता है कीएकादशी माता का जन्म भगवान विष्णु जी के शरीर से ही हुआ है। ऐसा माना जाता है की इस दिन मां एकादशी ने उत्पन्न होकर अतिबलशाली और अत्याचारी राक्षस मुर का वध किया था। उत्पन्ना एकादशी कब है? उत्पन्ना एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा, पूजा सामग्री, मंत्र आदि के बारे में जानने के लिए इस आर्टिकल को आखिर तक पढ़े-
Utpanna Ekadashi 2019
ऐसी मान्यता है की इस दिन स्वयं भगवान विष्णु ने माता एकादशी को आशीर्वाद देते हुए इस व्रत को पूज्यनीय बताया था. माना जाता है कि इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से सभी पापों का नाश हो जाता है।
उत्पन्ना एकादशी हर साल देशभर में बड़ी धूम-धाम के साथ मनाई जाती है। हर साल उत्पन्ना एकादशी का पर्व हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक मनाया जाता है। इस साल उत्पन्ना एकादशी 22 नवंबर को पड़ रही है। दक्षिण भारत में उत्पन्ना एकादशी का त्यौहार कार्तिक मास में मनाया जाता है।
उत्पन्ना एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
उत्पन्ना एकादशी की तिथि: 22 नवंबर 2019
एकादशी तिथि प्रारंभ: 22 नवंबर 2019 को सुबह 09 बजकर 01 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 23 नवंबर 2019 को सुबह 06 बजकर 24 मिनट तक
पारण का समय: 23 नवंबर 2019 को दोपहर 01 बजकर 10 मिनट से दोपहर 03 बजकर 15 मिनट तक
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उत्पन्ना एकादशी का महत्व
हिन्दू धर्म को मानने वालों में उत्पन्ना एकादशी का खास महत्व है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. यही नहीं जो लोग एकादशी का व्रत करने के इच्छुक हैं उन्हें उत्पन्ना एकादशी से ही व्रत की शुरुआत करनी चाहिए. आपको बता दें कि साल में 24 एकादशियां पड़ती हैं और हर महीने दो एकदाशी आती हैं. कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मुरसुरा नाम के असुर का वध किया था. श्री हरि विष्णु की जीत की खुशी में भी इस एकादशी को मनाया जाता है. इस एकादशी में भगवान विष्णु और माता एकादशी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है.
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उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि
– इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए पूरे घर में गंगाजल छिड़
– विघ्नहर्ता भगवान गणेश और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या तस्वीर सामने रखें.
– सबसे पहले भगवान गणेश को तुलसी की मंजरियां अर्पित करें.
– इसके बाद विष्णु जी को धूप-दीप दिखाकर रोली और अक्षत चढ़ाएं.
– पूजा पाठ करने के बाद व्रत-कथा सुननी चाहिए. इसके बाद आरती कर प्रसाद बांटें.
– व्रत एकदाशी के अलग दिन सूर्योदय के बाद खोलना चाहिए.
– इस दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए.
– इस दिन गरीब और जरूरतमंदों को यथाशक्ति दान देना चाहिए.