गाँधी जयंती के उपलक्ष पर महात्मा गाँधी जी को शत शत नमन : आज 2 अक्टूबर है, यह दिन अक्टूबर के हर दिन की तरह कोई आम दिन नहीं है। आज के दिन उस महान शख्सीयत का जन्म हुआ था, जिसने सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश यानी, हमारे देश भारत को आजाद कराया था। गाँधी जी के ही नेतृत्व में सभी भारत वासियों ने मिलकर भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद कराया था। किसे पता था की एक छोटा सा वकील एक दिन पूरे भारत देश का नायक बन जायेगा। गाँधी जी द्वारा उठाए गए उन अदमय साहस से भरे क़दमों को कोई कभी नहीं भूल सकता।
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गाँधी जी का जीवन किसी आम बच्चों की ही तरह था। 2 अक्टूबर 1869 को इस महँ हस्ती का जनम करमचंद गाँधी एवं माता पुतलीबाई के घर पोरबंदर में हुआ था। मोहनदास बचपन से ही बहुत शर्मीले थे एवं बहुत ही डरपोक भी थे जबतक वे पूरी तरह से जवान कहने लायक नहीं हो गए थे तब वह हमेशा अपने साथ एक जलती हुई लालटेन लेकर सोते थे। उस समय, गाँधी जी के पिता जी पोरबंदर के चीफ मिनिस्टर थे। गाँधी जी की माता जी बहुत ही धार्मिक किस्म की थी। यही कारण था की गाँधी जी का सस्वभाव भी एकदम धार्मिक था। हिंसा और मार काट से तो वे कोसों दूर रहते थे। यहाँ तक की उन्हें गुस्सा भी बहुत काम आता था।
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तेरा साल की उम्र में उनकी शादी कस्तूरबा कर दी गई थी। गाँधी जी 18 साल की उम्र में लन्दन वकालत की पढाई करने गए थे। लेकिन पढाई पूर करने के बाद जब उन्हें अपना हल केस लड़ने के लिए मिला तो वे इतना घर गए थे की वे कोर्टरूम से सीधा भर चले गए परिणाम स्वरूप उन्हें अपनी फीस भी वापस करनी पड़ी। काम के लिए धक्के खा रहे मोहनदास करमचंद ग़ांधी को आखिरकार दक्षिण अफ्रीका में 1 साल काम करने का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया। दक्षिण अफ्रीका में जो उनके साथ हुआ उसके बाद से ये मोहनदस करमचंद गाँधी से ‘बापू’ बन गए।
7 जून 1893 को प्रीटिरिआ जाने के लिए रेलगाड़ी से सफर करते समय एक अंग्रेज ने रेल के फर्स्ट क्लास डिब्बे में उनकी उपस्थिति अर सवाल उठाया और गाँधी जी को कहा की वे किसी पीछे वाले डब्बे में हकले जाएं जबकि गाँधी जी के पास उसे डिब्बे में सफर करने का टिकेट था। जब गाँधी जी ने इसका विरोध किया तोह उसने गाँधी को एक स्टेशन धक्के मरकर बहार निकाल दिया और उनका सामान भी फेंक दिया।
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इस दिन जो हुआ, इस बात से गाँधी जी के दिल को बहुत ठेस पहुची और उन्होंने तेय किया की अब बस बहुत हो गय, अब तोह वे इस गोर काले के भेद को हमेशा के लिया मिटा कर रहेंगे। चाही इसके लिए उन्हें कितने भी साल लग जाएं। यहीं से उस गाँधी की शुरुआत हुई जिन्हें आज, हम याद करते हैं। इस स्वन्त्रता की लड़ाई गाँधी जी के लिए बिलकुल भी आसान नहीं थी। जाने कितनी बार पड़ा और न जाने कितनी बार उन्होंने अंग्रेज़ो की लाढियां खाई। लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने इस लड़ाई को कभी नहीं छोड़ा।
दक्षिण अफ्रीका में इस भेद को मिटाने के बाद जब गाँधी जी भात लौटे तो उन्होंने देखा की किस तरह अंगरेजी हुकूमत भारत के नागरिकों पर केहर बरस रही है। भारतवासियन के खिलाफ भड़ते हुए अत्याचार को देख कर, उन्होंने ये ठान लिया की अब वे अंग्रेजी सरकार को यहाँ से भगाकर ही दम लेंगे। ‘सत्याग्रह’ की शुरुआत गाँधी जी ने ही की थी। और गाँधी जी के ही नेतृत्व में पूरे भारत वर्ष को आज़ादी मिली।
गाँधी जी सहित सभी स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा उठाये गए इस अदम्य सहास से भरे कदम को हम कभी नहीं भूल सकते। उन सभी लग्न को शत शत नमन।
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