नमस्कार दोस्तों आज की जानकारी में कलीम आजिज़ कोट्स शायरी और स्टेटस दिए गए हैं। कलीम आजिज़ का जन्म 1920 में बिहार के नालंदा में हुआ था। 17 साल की छोटी उम्र से ही इन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। पटना विश्वविद्यालय से उर्दू स्नातक करने के बाद वह वहीं पर पढ़ाने लग गए थे। बिहार सरकार ने कलीम आजिज़ को अपने उर्दू सलाहकार के रूप में नियुक्त किया था। उनकी लिखे संग्रह में से ख़ास हैं – जब फ़स्ले बहारां आयी थी, वो जो शायरी का सबब हुआ और जहां ख़ुशबू ही ख़ुशबू थी।
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Kaleem Ajiz Shayari Status Quotes in Hindi
कलीम आजिज़ के लिखने है और बोलने का अंदाज काफी ज्यादा अलग था। आज भी शायरी के शौकीन रखने वाले इंटरनेट पर कलीम आजिज़ कोट्स, शायरी और स्टेटस सर्च करते रहते हैं। कलीम आजिज़ को हिंदुस्तान के साथ-साथ मुस्लिम समाज में भी काफी ज्यादा पसंद किया जाता है। हमारे आज के जानकारी में 2021 के सर्वेक्षण Kaleem ajiz best Hindi shayari, sher collection दिए गए हैं। यहां जानकारी उनके लिए बनाई गई है जिन्हें आए दिन एक अच्छी शायरी चाहिए होती है। हमारे देश में ज्यादातर सभी लोग शायरी पढ़ना और लिखना पसंद करते हैं।
अहमद फराज़ शायरी | Ahmad Faraz Shayari in Urdu
दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़
तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो
करे है अदावत भी वो इस अदा से
लगे है कि जैसे मोहब्बत करे है
ज़िंदगी में है वो उलझन कि परेशां हो कर
ज़ुल्फ़ की तरह बिखर जाने को जी चाहे है
मय में कोई ख़ामी है न साग़र में कोई खोट
पीना नहीं आए है तो छलकाए चलो होदिल की बाज़ी लगे फिर जान की बाज़ी लग जाए
इश्क़ में हार के बैठो नहीं हारे जाओआ रख दहन-ए-ज़ख़्म पे फिर उंगलियां अपनी
दिल बांसुरी तेरी है बजाने के लिए आ
कलीम अजीज शायरी स्टेटस कोट्स हिंदी में
आप चाहे तो आज की Kaleem ajiz best Hindi shayari, sher collection को ऑनलाइन सोशल मीडिया की मदद से शेयर कर सकते हैं। कलीम आजिज़ वह लेखक है जिनके शब्दों में जादू और उर्दू अल्फ़ाज़ की झलक साफ दिखाई देती है। कलीम आजिज़ के उर्दू शायरी के साथ साथ इनके विचारों को भी काफी ज्यादा मान्यता दी जाती है। आये दिन कलीम आजिज़ को उनके शब्दों के अंदाज़ के लिए याद किया जाता है। आज की जानकारी में कलीम आजिज के स्वभाव और विचारों के लिए जितने शब्द बोले जाए उतने कम है।
ज़ालिम था वो और ज़ुल्म की आदत भी बहुत थी
मजबूर थे हम उस से मोहब्बत भी बहुत थी
जैसा बे-दर्द हो वो फिर भी ये जैसा महबूब
ऐसा कोई न हुआ और कोई होगा भी नहीं
न जाने रूठ के बैठा है दिल का चैन कहां
मिले तो उस को हमारा कोई सलाम कहेभूली हुई याद आ के कलेजे को मले है
जब शाम गुज़र जाए है जब रात ढले हैमिरी बर्बादियों का डाल कर इल्ज़ाम दुनिया पर
वो ज़ालिम अपने मुंह पर हाथ रख कर मुस्कुरा दे है
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