मकर संक्रांति की कविता 2020 | Makar Sankranti Poem in Hindi (Kavita): मकर संक्रांति के पर्व को लेकर देशभर में अलग-आग मान्यता है और इसे अलग-अलग नाम से भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति का पर्व हिंदू धर्म के लोगों के लिए काफी महत्वूर्ण है। पवित्र नदियों खासकर गंगा नदी में स्नान कर सूर्य देव की पूजा की जाती है। मकर संक्रांति से ही सभी प्रकार के शुभ कार्य की शुरुआत हो जाती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के साथ ही वस्तुओं का दान भी किया जाता है। इस दिन गन्दा नदी के किनारे मेले का भी आयोजन किया जाता है। उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति के पर्व को खिचड़ी का पर्व के नाम से मनाया जाता है और इस दिन लोग चावल और दाल की खिचड़ी का सेवन करते है और गरीबों को दान भी करते है। मकर संक्रांति के मौके पर हमे कविता लेकर आए है। मकर संक्रांति पोएम इन हिंदी को दोस्तों संग शेयर कर उन्हें इसकी बधाई दें।
मकर संक्रांति की कविता 2020
मकर संक्रांति की कविताएं लेकर हम हाजिर हुए है। मकर संक्रांति पर लिखी ये पोएम आपके मन को छू लेंगी। मकर संक्रांति को देश के हर हिस्से में मनाया जाता है लेकिन इसकी सबसे ज्यादा धूम उत्तर भारत के राज्यों में देखने को मिलती है। यहां पर लोग तिल और गुड़ से बने पकवान खाएं जाते है और मिठाईयां बांटी जाती है। इस दिन बाजार और घरों में एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है।
आज का दिन है अति पावन
मकर संक्रांति का है दिन
आज उड़ेगी आकाश में पतंग
होंगे लाल पिले सब रंग
गंगा में डुबकी लगाओ
करो शीतल तन और मन
दान करो चीनी चावल धान
कमाओ पुण्या बनाओ परमार्थ
जोड़ो हाथ ईशवर से वर माँगो
सब जन जीवन का हो कल्याण
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आसमान में चली पतंग
मन में उठी एक तरंग
लाल, गुलाबी, काली, नीली,
मुझको तो भाती है पीली
डोर ना इसकी करना ढीली
सर-सर सर-सर चल सुरीली
कभी इधर तो कभी उधर
लहराती है फर फर फर
स्मृति आदित्य
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आसमान में चली पतंग
मन में उठी एक तरंग
लाल, गुलाबी, काली, नीली,
मुझको तो भाती है पीली
डोर ना इसकी करना ढीली
सर-सर सर-सर चल सुरीली
कभी इधर तो कभी उधर
लहराती है फर फर फर
स्मृति आदित्य
Makar Sankranti Poem in Hindi
ऐसी एक पतंग बनाएँ
जो हमको भी सैर कराए
कितना अच्छा लगे अगर
उड़े पतंग हमें लेकर
पेड़ों से ऊपर पहुँचे
धरती से अंबर पहुँचे
इस छत से उस छत जाएँ
आसमान में लहराएँ
खाती जाए हिचकोले
उड़न खटोले सी डोले
डोर थामकर डटे रहें
साथ मित्र के सटे रहें
विजय पताका फहराएँ
हम भी सैर कर आएँ
चंद्रकला गंगवाल
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आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।
घर में हम सब खुशियाँ फैलाये
पतंगे हम खूब उड़ाये।
सब मिलकर हम नाचे गाये
मौज मस्ती खूब उड़ाये।
आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।
गली मोहल्ले मे बांटे सारे ।
सब मिलकर कर खाये प्यारे
गंगा में डूबकी लगाये ।
शरीर अपना स्वस्थ बनाये ।
आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।।
Makar Sankranti Kavita
आसमान का मौसम बदला
बिखर गई चहुँओर पतंग।
इंद्रधनुष जैसी सतरंगी
नील गगन की मोर पतंग।।
मुक्त भाव से उड़ती ऊपर
लगती है चितचोर पतंग।
बाग तोड़कर, नील गगन में
करती है घुड़दौड़ पतंग।।
पटियल, मंगियल और तिरंगा
चप, लट्ठा, त्रिकोण पतंग।
दुबली-पतली सी काया पर
लेती सबसे होड़ पतंग।।
कटी डोर, उड़ चली गगन में
बंधन सारे तोड़ पतंग।
लहराती-बलखाती जाती
कहाँ न जाने छोर पतंग।।
मोहम्मद साजिद खान
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रंग-बिरंगी पतंगें देख
सूरज दादा घबराए
कहीं मुझमें ना अटक जाए
खैर इसी में है अब तो
कि अभी ना बाहर आऊँ
उस छोटे बादल के पीछे
जाकर मैं छिप जाऊँ
गिरीश पंड्या
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उम्मीद करते है की मकर संक्रांति की कविता आपको पसंद आई होगी। मकर संक्रांति पोएम को अपने दोस्तों और परिजनों संग शेयर करें और उन्हें इस दिन की बधाई दें। इस आर्टिकल को सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें।