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Sindoor khela Details in Hindi – दशहरे के त्योहार पर क्यों मनाया जाता है सिंदूर खेला?

नवरात्रि के दिन जैसे-जैसे बीत रहे हैं दशहरा का दिन नहीं देखा था जा रहा है। दशहरा की रामलीला देश के अलग-अलग कोनो में आयोजित की गई है जिसमें हर कोई बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है। साथ ही साथ बाजार में रौनक देखने को मिल रही है। शारदीय नवरात्रि को हर साल दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है। ठीक इसी प्रकार बंगाल में आखिरी दिन पर दुर्गा पूजा मनाई जाती है। बंगाल समुदाय की महिलाएं इस दिन दुर्गा मां को सिंदूर अर्पित करती हैं। इस दिन को सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है।

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Why Sindoor khela is Celebrated on the Festival of Dussehra Details in Hindi

इस दिन सभी महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। मां की विदाई को देखते हुए इस दिन को मनाया जाता है। बंगाल में इस त्योहार को बड़े ही भव्यता के साथ में मनाया जाता है। चलिए आपको बताने वाले हैं कि सिंदूर खेला का महत्व क्या होता है। इस दिन की कुछ खास विशेषताओं के बारे में भी आप सभी को बताने वाले हैं। नवरात्रि में 10 दिन के लिए मां अपने मायके आती है और इन 10 दिनों में बंगाल में उत्सव मनाया जाता है। सिंदूर खेला की रसम पहली बार पश्चिम बंगाल में शुरू हुई थी।

दशहरे के त्योहार पर क्यों मनाया जाता है सिंदूर खेला?

450 साल पहले बंगाल में दुर्गा विसर्जन के पहले सिंदूर खेला मनाया गया था। पान के पत्तों से मां दुर्गा का स्पष्ट करते हुए सिंदूर लगाया जाता है। इस दिन सभी महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करते हैं। माता रानी को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है। इस दिन भगवान प्रसन्न होकर सौभाग्य का वरदान देते हैं। बंगाल में इस त्यौहार को दशहरा या फिर दुर्गा विसर्जन के दिन मनाया जाता है। बंगाल के अलग-अलग शहरों में दुर्गा पूजा की रौनक देखने को मिलती है। बड़े-बड़े पंडाल लग जाते हैं जिसमें आकर्षित मूर्तियां देखने को मिलती हैं।

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नवरात्रि के 9 दिन के बाद दसवें दिन सिंदूर खेला आयोजित किया जाता है। इस दिन धुनुची नृत्य परंपरा बंगाल में देखने को मिलती है। आज की जानकारी में सिंदूर खेला त्योहार से जुड़ी परंपरा के बारे में आपको बताया गया है। आप सभी को सिंदूर khelaa की हार्दिक शुभकामनाएं।

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