Pitru Paksha 2019: जानिए! पितृ पक्ष तिथि, श्राद्ध के नियम, विधि, कथा और महत्व पूर्वजों की आत्मा के लिए हिन्दू धर्म में श्राद्ध किया जाता है। हर साल श्राद्ध की तिथि हिन्दू पौराणिक कैलेंडर के अनुसार तय होती है जो इंग्लिश कैलेंडर में हर बार अलग होती है। श्राद्ध कब से शुरू हो रहे है? श्राद्ध की तिथि, नियम, कथा आदि के बारे में यहाँ जानकारी दी जा रही है। जिन्हे पढ़ने के बाद आपके श्राद्ध से जुड़े सभी सवालों के जवाब मिल जाएँगे।
Pitru Paksha 2019
श्राद्ध कर पूर्वजों की आत्मा क शांति दिलाई जाती है। अगर पितर नाराज हो जाए तो जीवन में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। घर परिवार में अशांति रहती है। नौकरी या व्यापर में भी उनकसान होने लगता है। ऐसे में पितरों को तृप्त करना और उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करना जरूरी माना जाता है. श्राद्ध के जरिए पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है और पिंड दान व तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति की कामना की जाती है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन मास की कृष्ण पक्ष में आते है। जिसकी शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है। वही श्राद्ध का समापन अमावस्या से होता होता। इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार इस साल यानि 2019 म पितृ पक्ष की शुरुआत सितंबर महीने में हो रही है। आमतौर पर पितृ पक्ष 16 दिनों का होता है. इस बार पितृ पक्ष 13 सितंबर से शुरू होकर 28 सितंबर को खत्म होगा।
श्राद्ध की तारीख
13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
14 सितंबर- प्रतिपदा
15 सितंबर- द्वितीया
16 सितंबर- तृतीया
17 सितंबर- चतुर्थी
18 सितंबर- पंचमी, महा भरणी
19 सितंबर- षष्ठी
20 सितंबर- सप्तमी
21 सितंबर- अष्टमी
22 सितंबर- नवमी
23 सितंबर- दशमी
24 सितंबर- एकादशी
25 सितंबर- द्वादशी
26 सितंबर- त्रयोदशी
27 सितंबर- चतुर्दशी
28 सितंबर- सर्वपित्र अमावस्या
पितृ पक्ष का महत्व
हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है. हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध करना बेहद जरूरी होता है. मान्यता है कि अगर श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है. वहीं कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वे प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. मान्यता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरों को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं. इस दौरान अगर पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दुखी हो जाती है.
पितृ पक्ष में किस दिन करें श्राद्ध?
दिवंगत परिजन की मृत्यु की तिथि में ही श्राद्ध किया जाता है. यानी कि अगर परिजन की मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई है तो प्रतिपदा के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए. आमतौर पर पितृ पक्ष में इस तरह श्राद्ध की तिथि का चयन किया जाता है:
– जिन परिजनों की अकाल मृत्यु या किसी दुर्घटना या आत्महत्या का मामला हो तो श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है.
– दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और मां का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है.
– जिन पितरों के मरने की तिथि याद न हो या पता न हो तो अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए.
– अगर कोई महिल सुहागिन मृत्यु को प्राप्त हुई हो तो उसका श्राद्ध नवमी को करना चाहिए.
– संन्यासी का श्राद्ध द्वादशी को किया जाता है.