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Pareeksha Zee5 Movie Review In Hindi: परीक्षा फिल्म की पूरी कहानी जाने !

Pareeksha Movie Review In Hindi: कभी सोचा आपके किचन में बर्तन के बीच छुपी हुईं छोटी सी चम्मच किसी इंसान की पूरी क़िस्मत लिखने की पूरी ताक़त रखती है।अगर ये चाँदी में बदलकर बचपन से किसी के मुँह लग जाए तो आप सीधा राजा बोध की गद्दी पर बैठ जाते हो।लेकिन अगर ये प्लास्टिक बनकर हाथ लगे तो समझ लीजिए। आपकी ज़िंदगी की गाड़ी गंगू तेली के नक़्शों क़दमों पर दोड़ने वाली है। समझ में नई आया कोई बात नई नए ज़माने वाले लोगों को एक रियलस्टिक और एक ताज़ा- ताज़ा एक इग्जैमपल लेकर ऊपर वाली बात को आसान शब्दों में उतारने की कोशिश करती हूँ।अगर आप नेपोटीजन की फ़ैक्टरी चलाने वाले व्यापारी के घर जन्म लेते हो तो किसी तेलेंट या पसीना बहाने वाली कोई ज़रूरत नहीं है। सीधा आपके घर देश की बेटी वाली फ़िल्मों का ऑफ़र ख़ुद चलकर आता है। वरना अगर आप क़िस्मत के मारे है तो फिर ऐडी चोटी का जोर लग लीजिए। हज़ारों लाखों इंटर्व्यू में अपनी दुकान खोलकर अपने तेलेंट का प्रचार कीजिए।उसके बाद कहीं जाकर एक घिसी- पीटी फ़िल्म में हीरो के पीछे वाली भीड़ में आपको अपना चेहरा दिखाने का मौक़ा मिलता है।लेकिन किसी महापुरुष ने कहा था। काग़ज़ पर लिखने वाली क़लम में बड़ी- बड़ी लड़ाइयाँ लड़ने वाली तलवार से भी ज़्यादा ताक़त होती है। ठीक उसी तरह गली- गली में बिकने वाले प्लास्टिक पेन जितनी साधारण सी फ़िल्म नेपोटीजम की तलवार लेकर घूमने वाले गुंडे मवालियो के चेहरे पर काली सियाहि पोथने के लिये मैदान में उतर आइ है। लड़ाई ज़रा आर- पार की होगी । किस तरफ़ जाना है आप भी मन बना लीजिए।

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Pareeksha Zee5 Movie Review in Hindi

Pareeksha Movie Full Story Explained In Hindi

हेलो दोस्तों नमस्कार आज हम आपको बताने जा रहे है। Pareeksha Hindi Review सबसे पहले सबसे ज़रूरी बात फ़िल्म को आप zee5 पर देख सकते हो सिर्फ़ डेड घंटे का इंतज़ार करिए। उसके बाद तेलेंट और नेपोटीजम की लड़ाई में जीत किसकी होगी पूरा फ़ैसला आपके सामने दूध का दूध पानी का पानी बनकर हाज़िर हो जाएगा। इस बार कहानी राँची में शुरू होती है जहाँ पर मामूली सा रिक्शा चलाने वाला बूची अपने बेटे और अपनी पत्नी के साथ जैसे – तैसे वाली ज़िंदगी को आगे भडा रहे है। एक तो पैसों की क़िल्लत दूसरी तरफ़ शरीर को तोड़ने वाली मेहनत बूची के बेड- बड़े सपने चट्टानो के बीच पीसकर धीरे- धीरे चकनाचुर होने लगते है।लेकिन अंधेरो से डूबी हुई ज़िंदगी में सूरज बनकर प्रकट हुआ इनका बेटा बुलबुल कुमार पड़ाई में काफ़ी तेज़ है। और मेहनत के पंख लगाकर आसमान में उड़ने के ख़्वाब देखता है।कमी है तो हिम्मत और होसले की जिसे दूर करने के लिए बूची चादर की लम्बाई से पैर बाहर फेलाकर अपने बेटे को सरकारी स्कूल से निकालकर शहर के सबसे बड़े स्कूल में पढ़ाने का मन बना लेते है।कहानी में ट्विस्ट आता है।

जब स्कूल में मिलने वाले ज्ञान को पाने के लिए ख़र्च होने वाली फ़ीस के पैसे जुटाना धीरे- धीरे बूची और उसके परिवार के लिए सबसे बड़ा चाएलेज बन जाता है। जिसको पाने का शोर्ट्कट वाला रास्ता जुर्म के काले दरवाज़े खोल देता है।क्या रिक्शे वाले का बेटा रिक्शा वाला बनेगा। जैसे समाज के ताने और चुटकुले हक़ीक़त में बदल जाएँगे।या फिर इस बार तक़दीर की कहानी मेहनत और तेलेंट की सिहाई से लिखकर बुलबुल कुमार स्कूल में नम्बर वन की कुर्सी हासिल कर लेगा।आख़िर एक मामूली छोटे शहर में ऐसा क्या अतरंगी कारनामा हो गया।जिसमे एक बड़े पुलिस ऑफ़िसर ऐसी की हवा के मज़े लेने वाले नेता को ग़रीबों की बस्ती में आने को मजबूर कर दिया। और सबसे बड़ा सवाल क्या ज्ञान का मंदिर कहलाने वाला स्कूल क्या पैसों के दम पर क़िस्मत बदलने का हक़ देता है या फिर हाथ की लकीर पर ताला लगाकर घूमने वाले मज़दूर भी आज़ाद की चाबी तलाश कर सकते है।सारे जवाब मिलेंगे फ़िल्म परीक्षा में देखो परीक्षा कोई मामूली फ़िल्म नहीं है। इसका लेवल कितना ऊपर है इस बात का अंदाज़ा इससे ही लग जाता है।की फ़िल्म का लीक करेक्टेर किसी मशहूर सर नेम वाले किसी सूपर्स्टार ने नाहीं बल्कि छोटे बच्चे शुभम ने प्ले किया है। उसके बावजूद पूरे डेड घंटे आपके आँख, कान, दिल और दिमाग आपके उसके इशारों पर नाचते रहते है।

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जब एक मासूम सा बच्चा मन्नगड़न कहानी पर बनी फ़िल्म में प्रकट होकर अपने चेहरे पर सपनो को छूने वाली हँसी और दिल टूटने वाले आँसू आपकी ज़िंदगी में गहराई से शामिल कर दे। लेकिन जानवी कपूर देश की बेटी गुंजन सक्सेना पर बनने वाली असल ज़िंदगी की कहानी पर दो मिनट के ट्रेलर में आपको आँखे डोनेट करने को मजबूर कर दे और चेहरा ग़ुस्से से लाल हो जाए तो समझ लीजिए की तेलेंट के तूफ़ान में नेपोटीजम की धजिया उड़ने वाली है।जिस तरह से फ़िल्म की कहानी ऐजियूकैशन से होते हुए इमोशन तक का सफ़र पूरा करती है। वो आपको रियललाइफ़ में चलने वाले अमीरी या ग़रीबी का एहसास कराता है।जिसमें इंसानियत सबसे आख़री में और बैंक बैलेन्स सबसे ऊपर जयजद परखा जाता है।तारीफ़ डिरेक्टर फ़िल्म के प्रकाश झा की भी होनी चाहिए।

जिन्होंने एक सीरीयस इश्यू पर फ़िल्म बनाते हुए भी उसको बोरिंग जैसे शब्दों से कोसो दूर रखा है। जो काफ़ी टेडा काम है।एक ख़ासियत ये भी है।की फ़िल्म किसी भी तरह की चमक – धमक या बनावट से दूर हटकर एक दम रो तरीक़े से सोसायटी के सच को हमारे चेहरे पर लाकर मार देती है।जिसका निशान ज़ोर दार तमाचे की उँगलियों की तरह छप सा जाता है।ऊपर से फ़िल्मे आदिलहुसैन जैसे ऐक्टिंग के कोहिनूर डाइअमंड ख़ुद मोज़ूद है। जिनका ख़ुद फिलमिंदरेस्टी में होना ही इंडियन सिनेमा की क़िस्मत में ख़ुद चार चाँद लगा देता है। पढ़ाई की क़दर करने वाले स्टूडेंट से लेकर अपने बच्चे को पंख देने वाले पिता का करेक्टर आदिलहुसैन ने हर चीज़ को पर्फ़ेक्शन के पेरामिटर पर उतार दिया है।प्रियंका बॉस की प्रोफोमस आपके होश उड़ा सकती है।बस्ती में दिन को रात बनाने वाली एक मजबूर औरत के किरदार को जैसे मानो स्क्रीन पर ज़िंदा करके रख दिया है।संजय सूरी का रोल छोटा है।

लेकिन कलएमिक्स की मंज़िल तक पहुँचाने की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर संभालते हैऔर दिल चुराने वाली हँसी के साथ आपको मंत्रमुक सा कर लेते है। तैयार कम शब्दों में बोलू तो परीक्षा एक झाड़ू की तरह है। जो फ़िल्म इंडरेस्टी के साथ- साथ पूरी सोसायटी में चलने वाली भेद – भाव की गंदगी को साफ़ करने की हिम्मत दिखाती है।आप मौक़ा देकर तो देखिए वादा करती हूँ ज़िंदगी बदल जाएगी।मेरी तरफ़ से परीक्षा को पाँच में से चार स्टार एक स्टार सच्चाई और गहराई से लिपटी हुई कहानी के लिए। एक स्टार प्रकाश झा के चलाक लेकिन समझदार डरेकशन के लिए एक स्टार दम – दार ख़तरनाक ऐक्टिंग टू प्रोफोमेस के लिए एक स्टार तेज़ भागते स्क्रीन प्ले के लिए बात करूँ नेगेटिव एक स्टार कटेगा कहानी में डाले गये करेक्टेर को पूरे तरीक़े से बुने बिनाव में शामिल करने के लिए जिसके वजह से कुछ सवाल है। जो आख़री तक अधूरे छूट जाते है। बॉलीवुड और हॉलीवुड फिल्मो के रिव्यु हिंदी में पढ़ने के लिए हमारे साथ बने रहे

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