जानिए! सेना छावनियों को समाप्त करना क्यों चाहती है?: आज से करीब 250 साल पहले बनी सेना की छावनी बनी थी और तब इन छावनियों का निर्माण तत्कालीन ब्रिटिश सेना ने शुरू किया था| सबसे पहली छावनी बैरकपुर में बनी थी और फिर उसके बाद एक के बाद के 62 छावनियों का निर्माण हो गया| अब भारतीय सेना इन छावनियों को समाप्त करने का मन बना रही है| सेना ने इस बारे में रक्षा मंत्रालय को जानकारी दी है जिस पर विसहर विमर्श किया जा रहा है| सेना इतने बड़े पैमाने पर छावनियों को समाप्त क्यों करना चाहती है?
सेना छावनियों को रखरखाव के खर्चे की वजह से समाप्त करने की सोच रही है| इन छावनियों के रखरखाव पर काफी खर्चा होता है जिसे सेना बचाना चाहती है| यही वजह है की सेना छावनियों की संख्या में कमी लाना चाहती है| टाइम ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक देशभर के 19 राज्यों में सेना की 62 छावनियाँ मौजूद है जो तकरीबन 2 लाख एकड़ के एरिया में फैली हुई है| इस इनके रखरखाव और सुरक्षा पर 476 करोड़ रूपये की राशि प्रस्तावित की गई है|
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इन छावनियों में से अधिकतर का विकास देश की आजादी से पहले ही चूका था लेकिन आजादी के बाद भी कुछ सैन्य छावनियों का निर्माण हुआ| पहले के समय में सैन्य छावनियाँ शहर के बाहर हुआ करती थी लेकिन समय के बीतने और शहर बढ़ने के साथ ये छावनियाँ शहर में बीच में आ गई और यह मुख्य संपत्ति बन गई|
इन्ही चीजों को ध्यान में रखते हुए सेना ने छावनियों के सैन्य भाग को ‘मिलिट्री स्टेशंस’ में तब्दील करने और इसका पूरा नियंत्रण सेना को देने की बात कही है, वही नागरिक आबादी वाले हिस्से को स्थानीय नगरपालिका प्रशासन को रखरखाव या अन्य उद्देश्यों के लिए देने को कहा है।
बता दें की सेना की ये छावनियाँ तकरीबन 2 लाख क्षेत्र में फैली है| इन छावनियों में 50 से अधिक सैन्य व सिविलियन आबादी बस्ती है, जबकि बाकि अरे में मिलिट्री स्टेशंस, एयरबेस, नवल बेस, डीआरडीओ लैब, फायरिंग रेंज, कैंपिंग ग्राउंड्स आदि हैं। सैन्य छावनियों के विस्तृत भू-भाग का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है की अगर कोलकाता और मुंबई को मिला दिया जाए तो भी इन सैन्य छावनियों का क्षेत्रफल अधिक होगा।