सकट चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत की विधि, कथा, महत्व (Sakat Chauth): सकट चौथ का व्रत इस साल गुरुवार 24 जनवरी को रखा जाएगा| सकट चौथ का व्रत संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य आदि के लिए रखा जाता है| ऐसी मान्यता है की इस पवित्र दिन पर भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना करने से सभी संकट का नाश होता है| इस व्रत को देशभर के अलग हिस्सों में संकष्टी चतुर्थी, वक्रकुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ, माघी चौथ के नाम से जाना जाता है| इस व्रत को हर साल माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन किया जाता है| सकट चौथ या संकष्टी चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, व्रत कथा और इसके महत्व के बारे में नीचे पढ़े-
सकट चौथ 2019
सकट चौथ का व्रत विवाहित महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु, उनके अच्छे स्वास्थ्य और उसके उज्वल भविष्य की कामना करने के लिए रखती है| इस दिन सकंट हरण माने जाने वाले भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है| हिन्दू धर्म के लोग इस पर्व को बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाते है| सकट चतुर्थी 2019 की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं!
सकट चौथ का शुभ मुहूर्त
भारतीय समयानुसार सायं काल 9:25 पर चंद्रमा उदय होगा। इस बार संकष्टी चतुर्थी (सकट चौथ) 23 जनवरी को 23.59 पर शुरू हो होगी और 24 जनवरी को 20.53 बजे तक रहेगी।
संकष्टी चतुर्थी विशेस, मैसेज, SMS, स्टेटस, इमेज
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
– सुबह स्नान कर साफ और धुले हुए कपड़े पहनें. पूजा के लिए भगवान गणेश की प्रतिमा को ईशानकोण में चौकी पर स्थापित करें. चौकी पर लाल या पीले रंग का – कपड़ा पहले बिछा लें. भगवान के सामने हाथ जोड़कर पूजा और व्रत का संकल्प लें.
इसके बाद पूरे दिन व्रत रखें.
– शाम के समय भगवान गणेश को जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें. अक्षत और फूल लेकर गणपति से अपनी मनोकामना कहें, उसके – बाद ओम ‘गं गणपतये नम:’ मंत्र बोलते हुए गणेश जी को प्रणाम करें.
– एक थाली या केले का पत्ता लें, इस पर आपको एक रोली से त्रिकोण बनाना है. त्रिकोण के अग्र भाग पर एक घी का दीपक रखें. संतान की लंबी आयु की कामना करें.
– पूजन उपरांत चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें. पूजन के बाद लड्डू प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें.
सकट चौथ पूजा मंत्र
गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
सकट चौथ व्रत कथा
सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहा करता था. एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आंवा पका नहीं. बर्तन कच्चे रह गए. बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा तो उसने कहा कि बच्चे की बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा. तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र को पकड़ कर सकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया. लेकिन बालक की माता ने उस दिन गणोश जी की पूजा की थी. बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला तो गणेश जी से प्रार्थना की| सवेरे कुम्हार ने देखा कि आंवा पक गया, लेकिन बालक जीवित और सुरक्षित था. डरकर उसने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया. राजा ने बालक की माता से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने गणोश पूजा के विषय में बताया. तब राजा ने सकट चौथ की महिमा स्वीकार की तथा पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया. तबसे कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है.