BJP Candidates List 2018: चुनाव आयोग ने बीती 18 जनवरी को पूर्वोतर के तीन राज्यों होने वाले विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया था| जिसमे त्रिपुरा भी शामिल है| चुनाव आयोग की इस घोषणा के साथ ही राज्यभर में चुनावों को लेकर हलचल शुरू हो गई और सभी राजनीतिक पार्टियाँ चुनावों की तैयारियों में लग गई| कांग्रेस पार्टी ने त्रिपुरा और मेघालय के विधानसभा चुनावों के लिए अपने उमीदवारों की पहली सूची शनिवारी 27 जनवरी को जारी कर दी| इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने बिना समय गवाते हुए त्रिपुरा असेंबली इलेक्शन के लिए अपनी कैंडिडेट्स लिस्ट को जारी कर दिया|
जे.पी नड्डा ने इस बात की जानकारी दी की बीजेपी त्रिपुरा की केवल 51 सीटों पर अपने उमीदवारों को उतारेगी बाकि बची 9 सीटों पर IPFT के लिए छोड़ेगी| जो त्रिपुरा में बीजेपी की गठबंधन पार्टी है|
Out of the 60 seats in Tripura, BJP will contest elections in 51 seats and IPFT on the remaining 9 seats: JP Nadda pic.twitter.com/qxJ5CuuoEG
— ANI (@ANI) January 27, 2018
त्रिपुरा असेंबली इलेक्शन 2018 के लिए कैंडिडेट लिस्ट जारी करते हुए केंद्रीय मंत्री जे.पी नड्डा की हम अपनी पहली सूची में 44 उमीदवारों के नाम का ऐलान कर रहे है| जल्द ही बाकि बचे उमीदवारों के नामो की घोषणा की जाएगी|
There are 60 seats in total. Today we have declared candidates for 44 seats: JP Nadda pic.twitter.com/GVV9BPrZrr
— ANI (@ANI) January 27, 2018
बता दें की त्रिपुरा विधानसभा सीटों पर 18 फरवरी को मतदान होने है| बीजेपी और उसकी गठबंधन पार्टी IPFT का मसद होगा की त्रिपुरा की सत्ता में बैठी लेफ्ट फ्रंट को किसी भी हाल में सत्ता से बाहर करना| त्रिपुरा में बीजेपी इसके लिए एक लम्बे समय से कोशिश कर रही है|
आपको बता दें की त्रिपुरा की राजनीति में भाषाई विवाद का काफी बड़ा महत्व है| हर बार चुनावी जंग बंगाली भाषी लोगों और स्थानीय 31 फीसद लोगों के बीच देखी जाती है| यही वजह है की इस विवाद ने 1997 में हिंसक रूप ले लिया था| जिसे शांत करवाने के लिए सेना को राज्य में बुलाना पड़ा था| हिंसा फिर से उग्र रूप न ले ले इसके लिए सरकार ने पूरे राजयभर में अफ्सपा (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पॉवर एक्ट) को लगाने का फैसला लिया था|
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त्रिपुरा में दो अलगाववादी संगठन है, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (एटीटीएफ), इन दोनों ही संगठनो का झुकाव हर बार अलगाववाद की तरफ ही रहा है| यह दोनों ही संघटन भारत से अलग होने की मांग को हवा दते रहे है| लेकिन अब हालत थोड़े सामान्य होने लगे है| साल 2015 के बाद यहाँ के संघटन राज्य में लगा अफ्सपा को हटाने पर जोर देने लगे है| इसके लिए राज्य के सभी संघटन एक मुख से यह आवाज उठा रहे है|