Mission Raniganj: भारत और इंडिया के बीच विवाद में अक्षय कुमार की फिल्म ‘द ग्रेट इंडिया रेस्क्यू’ का नाम एक बार फिर बदल दिया गया है। अब इसे ‘मिशन रानीगंज: द ग्रेट भारत रेस्क्यू’ के नाम से रिलीज़ किया जाएगा। पहले इसे ‘कैप्सूल गिल’ के नाम से रिलीज़ किया जाने की योजना थी। इस फिल्म का कहानी उस कोयला खदान में फंसे 220 मजदूरों की वास्तविक कहानी पर आधारित है, जिस पर यह फिल्म बनाई गई है। माह नवम्बर, साल 1989. जगह, पश्चिम बंगाल की रानीगंज कोयला खदान. यह घटना रात के समय घटी। वहां लगभग 220 मजदूर काम कर रहे थे।
Mission Raniganj Story Explained in Hindi
अचानक, खदान में एक विस्फोट हुआ और दीवार टूट गई। पानी की बहाव शुरू हो गई। मजदूरों को समझ में आ गया कि उनकी जिंदगी को खतरा है।
इस घटना के जिम्मेदारी के बाद, इससे पहले कि जानकारी सबको पहुंच सके, एक व्यक्ति मौके पर पहुंचा और 149 मजदूरों की जान बचाई। वह शख्स थे माइनिंग इंजीनियर जसवंत सिंह गिल, जिन्हें कैप्सूल मैन के नाम से जाना जाता है।
रानीगंज कोयला खदान किस राज्य में है, क्या हुआ था उस दिन?
माइन में एक ब्लास्ट होने के बाद, इससे पहले जानकारी के पहुंचने पर, रेस्क्यू मिशन की शुरुआत कर दी गई थी। इस घटना में 64 मजदूर ऐसे थे जो बुरी स्थितियों में फंसे थे। पानी का स्तर बढ़ रहा था और हालात बिगड़ रहे थे।
मजदूरों को बचाने के लिए बना कैप्सूल
सभी कुछ बड़े आनन-फानन से घटा। सबसे पहले, वॉकी-टॉकी के माध्यम से खदान के नक्शे की समझ की गई। नक्शे के अनुसार, खदान को 6 अलग-अलग हिस्सों में बाँटा गया था, और फिर वॉकी-टॉकी के माध्यम से फंसे हुए मजदूरों की पता लगाई गई।
मजदूरों की ट्रैकिंग शुरू करने के बाद, खदान के 64 मजदूर विभिन्न स्थानों पर बिखर गए, जहां सुरक्षित लगा। जो कोई भी सुरक्षित स्थान पा लेता, वह वहां पहुंच गया।
हालांकि हालात कठिन थे, लेकिन इस चुनौती का सामना करने के लिए आगे बढ़े जसवंत सिंह गिल। वे तत्कालीन एडिशनल चीफ माइनिंग इंजीनियर थे, कोल इंडिया लिमिटेड के। उन्होंने रेस्क्यू मिशन की शुरुआत की और मजदूरों को बाहर निकालने के लिए एक स्टील और लोहे के कैप्सूल का निर्माण किया।
आखिर तक खदान में रहे
जसवंत खुद ही खदान में उतरे ताकि मजदूरों को बाहर निकाल सकें। धीरे-धीरे, उन्होंने मजदूरों को कैप्सूल के माध्यम से बाहर निकालने का रेस्क्यू मिशन शुरू किया। इससे पहले कि मौके पर हालात और खराब हों, वो सबसे अंत में आखिरी मजदूर को बाहर निकालने में सफल रहे।
1991 में, जसवंत सिंह को इस काम के लिए सर्वोत्तम जीवन रक्षक पदक से सम्मानित किया गया। इसके बाद, उन्हें मानवता की सेवा के लिए भगत सिंह अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।
पुराने दिनों में, देश को 88% कोयला रानीगंज खदान से मिलता था
रानीगंज खदान देश के उन अहम स्थलों में से एक रहा है, जिसने भारत के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 19वीं शताब्दी में, इस खदान से देश को 88 फीसदी कोयला प्राप्त होता था, और यह देश के कोयला उत्पादन के 10वें हिस्से से भी कम कोयला आपूर्ति कर रहा है, जैसा कि मीडिया रिपोर्ट्स में उल्लिखित है।
रानीगंज के इस खदान का गौरव अब इतिहास के पन्नों में सिमट गया है, लेकिन इस खदान के बने हादसे की कहानी जल्द ही फ़िल्म के रूप में देखने को मिलेगी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रानीगंज कोयला खदान देश की पहली भारतीय कोयला खदान थी, जिसे 1774 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के जॉन सुमनेर और सुएटोनियस ग्रांट हीटली द्वारा खनन गतिविधियों के लिए लाइसेंस प्राप्त करने के बाद खोला गया था। 1974 में, खदान का राष्ट्रीयकरण हो गया और इसे भारतीय कोयला खदान प्राधिकरण ने अपने अधिकार में ले लिया।