एच-1बी वीजा का बढ़ सकता है आवेदन शुल्क, भारतीय आईटी कंपनियों पर पढ़ेगा प्रभाव- डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने एच1-बी वीजा के लिए आवेदन की फीस में बढ़ोतरी का प्रस्ताव दिया है| श्रम मंत्री एलेक्जेंडर एकोस्टा ने अमेरिकी सांसदों को बताया कि एक अप्रेंटिस कार्यक्रम को विस्तार देने के संबंध में निधि बढ़ाने के लिए यह प्रस्ताव दिया गया है| इस कार्यक्रम के माध्यम से अमेरिकी युवाओं को प्रौद्योगिकी संबंधित गतिविधियों में प्रशिक्षण दिया जाता है|
हालांकि अकोस्टा ने संसद (कांग्रेस) की समिति के समक्ष एक अक्टूबर 2019 से शुरू हो रहे वित्तीय वर्ष 2020 के लिए श्रम मंत्रालय का वार्षिक बजट पेश करते हुए एच-1 बी आवेदन शुल्क में कितनी बढ़ोत्तरी होगी अभी इसकी जानकारी नहीं दी है और यह भी नहीं बताया गया कि किन श्रेणियों के आवेदकों पर बड़ा हुआ शुक्ल लागू किया जाएगा|
लेकिन पूर्व के अनुभव के आधार पर देखा जाए तो भारतीय आईटी कंपनियों पर इस प्रस्तावित शुल्क से काफी अतिरिक्त वित्तीय बोझ उठाना पड़ेगा| बता दें की इंडियन आईटी कंपनियों की तरफ से एच-1बी वीजा के लिए काफी आवेदन आते है|
क्या होता है H-1B वीजा?
एच-1 बी वीजा गैर आव्रजक वीजा है जो अमेरिकी कंपनियों को विशिष्ट पेशों जिनमें तकनीकी या सैद्धांतिक विशेषज्ञता चाहिए होती है, में विदेशी कर्मचारियों को नौकरी पर रखने की इजाजत देता है. प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियां हर साल भारत एवं चीन जैसे देशों से लाखों कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए इस पर निर्भर होती है|
ट्रंप प्रशासन ने एच-1 बी वीजा कार्यक्रम को इस तर्क के आधार पर कड़ा कर दिया है कि विदेशी कर्मचारियों को नौकरी मिलने के कारण अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी मिलने की संभावनाएं कम हो जाती है|
अमेरिका में एच-1बी वीजा को लेकर कई बार विरोध होता रहा है। उनकी शिकायत है कि कंपनियां एच-1बी वीजा का इस्तेमाल कर अमेरिकियों की जगह कम सैलरी पर विदेशी कर्मचारियों को रख लेती हैं। 2015 में अमेरिका की मशहूर कंपनी डिज्री ने इस मसले पर कानूनी लड़ाई लड़ी थी। कंपनी के कर्मचारियों का आरोप था कि कम सैलरी की वजह से उनकी जगह एच-1बी वीजा के कर्मचारियों को रखा गया।