Ahoi Ashtami Kab Hai, Shubh Muhurat, Puja Vidhi, Vrat Katha, Mahatva: अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए हिन्दू धर्म की महिलाओं के द्वारा रखा जाता है। ऐसी भी मान्यता है निःसंतान शादी-शुदा महिला के द्वारा अहोई अष्टमी का व्रत रखने से संतान की भी प्राप्ति हो जाती है। हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन पूरे मन से व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। अहोई अष्टमी के दिन माँ पार्वती की पूजा की जाती है। ये त्यौहार मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। अहोई अष्टमी कब है? शुभ मुहूर्त, पजा विधि, व्रत कथा, पूजन सामग्री आदि के बारे में यहाँ जाने-
Ahoi Ashtami Kab Hai
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के 4 दिन बाद और दीपावली से 8 दिन पहले रखा जाता है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आता है. इस बार अहोई अष्टमी 21 अक्टूबर को है.
अहोई अष्टमी कब है
Ahoi Ashtami Puja Ka Shubh Muhurat
Ahoi Ashtami Ki Puja Vidhi
– अहोई अष्टमी के दिन सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
– अब घर के मंदिर में पूजा के लिए बैठें और व्रत का संकल्प लें.
– अब दीवार पर गेरू और चावल से अहोई माता यानी कि मां पार्वती और स्याहु व उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं. आजकल बाजार में रेडीमेड तस्वीर भी मिल जाती है.
– अब मां पार्वती के चित्र के सामने चावल से भरा हुआ कटोरा, मूली, सिंघाड़े और दीपक रखें.
– अब एक लोटे में पानी रखें और उसके ऊपर करवा रखें. इस करवे में भी पानी होना चाहिए. ध्यान रहे कि यह करवा कोई दूसरा नहीं बल्कि करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया होना चाहिए. दीपावली के दिन इस करवे के पानी का छिड़काव पूरे घर में किया जाता है.
– अब हाथ में चावल लेकर अहोई अष्टमी व्रत कथा पढ़ने के बाद आरती उतारें.
– कथा पढ़ने के बाद हाथ में रखे हुए चावलों को दुपट्टे या साड़ी के पल्लू में बांध लें.
– शाम के समय दीवार पर बनाए गए चित्रों की पूजा करें और अहोई माता को 14 पूरियों, आठ पुओं और खीर का भोग लगाएं.
– अब माता अहोई को लाल रंग के फूल चढ़ाएं.
– अहोई अष्टमी व्रत की कथा पढ़ें.
– अब लोटे के पानी और चावलों से तारों को अर्घ्य दें.
– अब बायना निकालें. इस बायने में 14 पूरियां या मठरी और काजू होते हैं. इस बायने को घर की बड़ी स्त्री को सम्मानपूर्वक दें.
– पूजा के बाद सास या घर की बड़ी महिला के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें.
– अब घर के सदस्यों में प्रसाद बांटने के बाद अन्न-जल ग्रहण करें.
Ahoi Ashtami Ki Katha
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं. साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी. दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गईं तो ननद भी उनके साथ चली गई. साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया. स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली, “मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी”.
स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती रही कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं. सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी.
Ahoi Ashtami Ka Mahatva
उत्तर भारत में अहोई अष्टमी के व्रत का विशेष महत्व है. इसे ‘अहोई आठे’ भी कहा जाता है क्योंकि यह व्रत अष्टमी के दिन पड़ता है. अहोई यानी के ‘अनहोनी से बचाना’. किसी भी अमंगल या अनिष्ट से अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं. यही नहीं संतान की कामना के लिए भी यह व्रत रखा जाता है. इस दिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं और पूरे दिन पानी की बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं. दिन भर के व्रत के बाद शाम को तारों को अर्घ्य दिया जाता है. हालांकि चंद्रमा के दर्शन करके भी यह व्रत पूरा किया जा सकता है, लेकिन इस दौरान चंद्रोदय काफी देर से होता है इसलिए तारों को ही अर्घ्य दे दिया जाता है. वैसे कई महिलाएं चंद्रोदय तक इंतजार करती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत का पारण करती हैं. मान्यता है कि इस व्रत के प्रताप से बच्चों की रक्षा होती है. साथ ही इस व्रत को संतान प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम माना गया है.