‘पिंक’ ने हर उस व्यक्ति को कटघरे में खड़ा किया है जिसने किसी लड़की या महिला को उसकी ड्रेस और उसके ‘ड्रिंक’ को देखकर कैरेक्टर सर्टिफिकेट देने की कोशिश की हो। जिसने किसी लड़की से यह सवाल किया है की आपने छोटी ड्रेस क्यों पहनी है ? आप शराब क्यों पीतीं हैं ? आप लड़कों से हस कर बात क्यों करती हैं ?
जब भी कोई रेप या छेड़छाड़ जैसा कोई मामला सामने आता है तो हम लोग मोमबतियां लेकर इंडिया गेट पहुच जाते हैं, सिर्फ एक दिन के लिए खूब हमदर्दी दिखाते हैं, खूब रोते हैं, चिल्लाते हैं, तोड़फोड़ करते हैं, रोड जाम कर देते हैं और उसके बाद सब भूल जाते हैं। जी हां यही सच है, कि इतना सब कुछ करने के बाद हम सब कुछ भूल जाते हैं। लेकिन क्या कभी आप खुद से सवाल करते हैं ? या फिर दूसरों को ही समझाते रहते हैं। हम महिला सश्कितकरण की बात तो करते हैं लेकिन सिर्फ ‘बात’ करते हैं। ऐसी सोच से उबरने के लिए आपको सड़क पर मोमबत्ती लेकर उतरने की जरूरत नहीं है बस खुद से कुछ सवाल करने की जरूरत है। अगर ये बात हर कोई खुद समझ जाए तो आंदोलन करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
इस फिल्म में सिर्फ एक छोटी सी बात जिसे हर कोई जानता पर समझता नहीं चाहता, उसे ही बहुत ही प्रभावशाली तरीके से समझाने की कोशिश की गई है और वो- ‘No’ फिल्म के एक डायलॉग से इसे अगर समझना चाहें तो ‘ना सिर्फ एक शब्द’ नहीं है, एक पूरा वाक्य है अपने आप में, इसे किसी व्याख्या (Explanation) की जरूरत नहीं है। ‘No’Means No चाहें वो आपकी गर्लफ्रेंड हो, आपकी पत्नी हो या फिर कोई सेक्स वर्कर हो।’
इस फिल्म में वो कड़वी सच्चाई दिखाई गयी है, जिसे कोई सुनना नहीं चाहता। जिंदगी भर हम सिर्फ और सिर्फ वही चीज़ें सुनना पसंद करते हैं 1 जो हम सुनना चाहते हैं , ना की वो जो सच है। यही कारण है की हम हमेशा सच्चाई से भागते रहे हैं।
कहानी :
यह फिल्म दिल्ली में रहने वाली 3 लड़कियाँ मीनल अरोड़ा (तापसी पन्नू), फलक अली (कीर्ति कुल्हाड़ी) और एंड्रिया तेरियांग (एंड्रिया तेरियांग) की है। ये तीनों लड़कियां एक रॉक कॉन्सर्ट में जातीं हैं जहाँ इनकी झड़प तीन लड़कों से हो जाती हैं। माहौल की गरमा गर्मी में मीनल अरोड़ा (तापसी पन्नू), एक लड़के के सर पर कांच की बोतल दे मरते हैं और वहां से ये तीनों लड़कियां भाग जाती हैं। ये तीनों काफी घबरा जाती हैं। ये कोई प्लस कंप्लेन नहीं चाहतीं क्योंकि इन्हें कोर्ट के चक्कर में नहीं पड़ना और ये तीनों इस घटना को भूल जाती हैं। लेकिन वो तीनों लड़के चाहते हैं की मीनल अरोरा माफी मांगे वरना ये लोग उन्हें सबक सीखाएंगे।
लेकिन मीनल क्यों माफी मांगे, उसने तो कोई गलती नहीं की। इसी उधेड़बून के बीच मीनल की गिरफ्तारी हो जाती है। इन लड़कियों पर आरोप है कि वो सेक्स के जरिए पैसे कमाती हैं। शरीफ लड़कों को फंसाकर पैसे ऐठती हैं और जो पैसे नहीं देते उन्हें मारने की कोशिश करती हैं। दीपक सहगल (अमिताभ बच्चन) उनका केस लड़ते हैं। इस कोर्ट में ‘ऐसी लड़की’ वाले हर तरह के सवाल पूछे जाते हैं। जैसे- क्या आप वर्जिन हैं? आपने कितने लोगों के साथ सेक्स किया? क्या आप सेक्स के जरिए पैसे कमाती हैं?
इस फिल्म के डायरेक्टर अनिरूद्ध राय चौधरी की ये पहली हिंदी फिल्म है और उन्होंने ये फिल्म यह सोचकर बनाई है की उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता की कितने लोग इस फिल्म को देखते हैं, बल्कि फर्क इस बात से पड़ता है की जितने लोग इस फिल्म को देखें उनके दिलों दिमाग पर गहरी छाप पड़े।
इस फिल्म को रश्मि शर्मा और शूजित सरकार ने प्रोड्यूस किया है। शूजित इससे पहेल ‘विकी डोनर’, ‘मद्रास कैफे’ और ‘पीकू’ जैसी फिल्में बना चुके हैं। वो अपनी फिल्मों में समाज को एक संदेश देने की कोशिश की है और इस फिल्म में भी वो कामयाब हुए हैं। इसके स्क्रिप्ट राइटर रितेश शाह हैं।
म्यूजिक :
फिल्म को म्यूजिक शांतनु मोइत्रा ने दियाब है। इस फिल्म के म्यूजिक काफी अच्छे हैं और फिल्म के सीन्स के साथ जुड़कर इन्हें काफी मजबूती देते हैं।
क्यों देखें :
अक्सर ही हम कड़वी सच्चाई से हमेशा दूर भागते हैं और सच कभी भी नहीं सुनना चाहते। इस फिल्म में इसी कड़वी सच्चाई को दिखाया गया है। फिल्म का हर एक सीन आपको काफी धैर्ये से देखना होगा क्योंकि कोर्ट रूम में पूछा गया हर सवाल आपको अंदर से हिला कर रख देगा। जो लोग हर फिल्म में मसाला और म्यूजिक ढूढते हैं ये फिल्म बिलकुल भी उनके लिए नहीं है। बहुत फिल्मों में आपने हॉट एंड बोल्ड सीन देखे होंगे लेकिन, अब समय है सच सुनने और देखने का ….. इससलए ये पिक्चर देखीये और दूसरों को भी दिखाईये।