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Srinivasa Ramanujan Biography (Wiki) in Hindi – श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय हिंदी में पढ़े !

हेलो दोस्तों नमस्कार, आज हम बात करने वाले हैं “Srinivasa Ramanujan Biography in hindi – श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय” के बारे में। दोस्तों आपको बता दे की भारत के विद्वान  और भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 में मद्रास, भारत में हुआ था। दोस्तों आज हम बात करने जा रहा है, भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जिन्होंने अपनी 32 साल की छोटी सी उम्र में गणित के क्षेत्र में बहुत सारी अद्भुत खोजें की है। दोस्तों यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि आधुनिक युग के इतने बड़े गणितज्ञ ने कोई भी विशेष पढ़ाई नहीं की। उन्होंने खुद की मेहनत और लगन से यह मुकाम हासिल किया।

वह पूरी जिंदगी गरीबी से जूझते रहे स्कूल के एग्जाम में फेल हो गए जिससे स्कॉलरशिप मिलना भी बंद हो गई और फिर उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पूरा जीवन उनके स्वास्थ्य ने भी उनका साथ नहीं दिया नौकरी के लिए भी उन्हें दर दर भटकना पड़ा। लेकिन ईश्वर पर अटूट विश्वास और गणित में उनकी लगन उन्हें हमेशा प्रेरित करती रही, उन्होंने और इतनी कठिनाइयों के बाद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।

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S Ramanujan ने कुल कितनी इक्वेशन की खोज की है ?

रामानुजन के टैलेंट का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि 11 साल की उम्र में स्कूल में रहते हुए कॉलेज लेवल की मैथमेटिक्स को किया करते थे। और रामानुजन ने 13 साल की उम्र में एडवांस टेक्नोमेट्री को रट लिया था और अपनी 32 साल की छोटी सी उम्र में उन्होंने मैथ की करीब 3900 इक्वेशन की खोज। इस महान गणितज्ञ के सम्मान में पूरा देश उनके जन्मदिन को नेशनल मैथमेटिक्स डे के रूप में बनाता है।

रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 18 सो 1887 को भारत के तमिलनाडु राज्य में इरोड नाम के एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम के श्रीनिवास अयंगर था जो 1 साड़ी की दुकान में क्लर्क के रूप में काम करते थे और उनकी मां का नाम Komalatammal
था जो एक हाउसवाइफ थी, और साथ ही साथ पास के मंदिर में भजन गाने का काम करती थी। रामानुजन का बचपन ज्यादातर कुंभकोणम मांग की जगह पर बीता, जो कि पुराने मंदिरो के लिए अभी भी बहुत फेमस है, और आज भी उनके घर को वहा म्यूजियम के रूप में देखा जा सकता है।

बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकास सामान्य बच्चों से बहुत कम था जहां बच्चे एक या डेढ़ साल में बोलने लगते हैं वही रामानुजन ने 3 सालों तक कुछ नहीं बोलते थे, और इसी वजह से उनके घर वालों को चिंता होने लगी थी की कहि रामानुजन गूंगे तो नहीं है। रामानुजन की माँ ने 1851 और 1854 में दो और बच्चों को जन्म दिया। दुर्भाग्य की बात रही की दोनों ही बच्चो की मृत्यु हो गई। 1 अक्टूबर 1892 को रामानुजन का एडमिशन एक लॉक्ल स्कूल में करवाया गया, उन्हें पढ़ाई लिखाई का शौक बचपन से ही था और मैथ के सब्जेक्ट में तो उनकी विशेष रूचि थी। रामानुजन ने 10 साल की उम्र में प्राइमरी की परीक्षा दी और पूरे जिले में सबसे ज्यादा नंबर लाने वाले छात्र बने और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने टाउन हायर सेकेंडरी स्कूल में एडमिशन ले लिया।

रामानुजन के प्रिंसिपल उनके लिए क्या कहा था ?

शुरू से रामानुजन के दिमाग में अजीबोगरीब सवाल आया करते थे जैसे की बादल और धरती के बीच कितनी दूरी होती है ? संसार में पहला पुरुष कौन था ? इसी प्रकार के कई सवाल उनके दिमाग में आया करते थे। उनके प्रश्न उनके टीचर्स को काफी अजीब लगते हैं, और वह उनसे ज़ल्ला उठते थे। लेकिन रामानुजन का स्वभाव इतना प्यारा था कि कोई भी उनसे ज्यादा देर तक नाराज नहीं हो सकता था। बहुत जल्द स्कूल में उनका टैलेंट सबको दिखाई देने लगा और जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि Math सब्जेक्ट में उनकी रुचि किसी बात से पता चलती है कि वह स्कूल में होने के बावजूद कॉलेज की सवालों को Solve किया करते थे।

एक बार तो रामानुजन के स्कूल के प्रिंसिपल ने यह भी कहा कि स्कूल में होने वाली परीक्षाओं का लेवल रामानुजन के लिए लागू नहीं होता है। क्योंकि वह चुटकी में उन प्रश्नों को सॉल्व कर देते थे, हाई स्कूल की परीक्षा में अच्छे नंबर लाने की वजह से रामानुजन को सुब्रमण्यम स्कॉलरशिप मिली जिससे उनकी आगे की पढ़ाई आसान हो गई। लेकिन आगे चलकर उनके सामने एक बहुत बड़ी परेशानी आई रामानुजम मैथ को इतना ज्यादा समय देने लगे कि वे दूसरे सब्जेक्ट पर ध्यान नहीं देते थे, यहां तक कि वे दूसरे सब्जेक्ट सी क्लास में भी मैथ के क्वेश्चन सॉल्व किया करते थे, और नतीजा यह हुआ कि 11वीं की परीक्षा में मैथ को छोड़कर बाकी सभी सब्जेक्ट में फेल हो गए।

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रामानुजन का बुरा समय !

जिसकी वजह से उनको स्कॉलरशिप मिलनी बंद हो गई। एक तो घर की आर्थिक स्थिति खराब और ऊपर से स्कॉलरशिप भी मिलनी बंद हो गई थी। रामानुजन के लिए यह एक बहुत कठिन समय था,  उसके बाद घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने मैथ की ट्यूशन लेनी शुरू कर दी। कुछ समय बाद 1907 में रामानुजन 12th क्लास की एग्जाम दी और उसमें भी फेल हो गए। जिसके बाद उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया, स्कूल छोड़ने के बाद अगले 5 साल का समय रामानुजन के लिए बहुत कठिन था। उनके पास ना कोई नौकरी थी और ना ही किसी के साथ काम करके अपनी रिसर्च को इंप्रूव करने का मौका। लेकिन इस पर अटूट विश्वास और गणित के प्रति उनकी लगन ने उन्हें रुकने नहीं दिया और इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अकेले ही अपने को जारी रखा।

1908 में रामानुजन के माता-पिता ने उनकी शादी जानकी नाम की एक लड़की से कर दी, शादी के बाद अब वे अकेले नहीं थी उनकी पत्नी की भी रिस्पांसिबिलिटी उन पर आ गई थी और इसीलिए सब कुछ भूल कर मैथ की रिसर्च में लगे रहना संभव नहीं था। इसीलिए नौकरी की तलाश में मद्रास आ गए, लेकिन 12वीं की परीक्षा पास ना होने की वजह से रामानुजन को नौकरी नहीं मिली और उसी बीच तबीयत भी बहुत बिगड़ गई, जिससे वापस उन्हें घर लौट कर आना पड़ा। तबीयत ठीक होने के बाद रामानुजन वापस मद्रास आए और फिर से नौकरी की तलाश शुरू कर दी। किसी के कहने पर वहां की डिप्टी कलेक्टर श्री वी रामास्वामी अय्यर से मिले अय्यर गणित के बहुत बड़े विद्वान थे और आखिरकार उन्होंने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और जिला अधिकारी श्री रामचंद्र राओ से कहकर उन्हें ₹25 हर महीने की स्कॉलरशिप दिलवाई।

Srinivasa Ramanujan की पहली रिसर्च !

इस स्कॉलरशिप की मदद से रामानुजन मद्रास में 1 साल रहते हुए अपना पहला रिसर्च पब्लिश किया। जिसका टाइटल था प्रॉपर्टीज ऑफ बरनौली (Properties of Bernoulli) अपना पहला रिसर्च पब्लिश करने के बाद, उन्होंने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में कलर्क की नौकरी कर ली, और सौभाग्य से इस नौकरी में काम का बोझ कुछ ज्यादा नहीं था और यहां उन्हें अपने गणित के लिए भी समय मिल जाता था। रामानुजन रात भर जाग जाग कर नए-नए गणित के फार्मूला लिखा करते थे और फिर थोड़ी देर आराम करने के बाद ऑफिस निकल जाया करते थे।

अब रामानुज की रिसर्च ऐसे लेवल पर पहुँच चुकी थी, कि बिना किसी अन्य गणितज्ञ की सहायता से काम को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था। इसी समय रामानुजन ने अपने थ्योरी के कुछ फार्मूला को एक प्रोफ़ेसर को दिखाए और उनसे सहायता मांगी तो उनका ध्यान लंदन के प्रोफेसर हार्डी की तरफ गया। प्रोफेसर उस समय विश्व की प्रसिद्ध गणितज्ञ में से एक थे। वह रामानुजन के साथ काम करने के लिए भी तैयार हो गए और आर्थिक सहायता करते हुए उन्हें इंग्लैंड बुला लिया।

रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी दोस्ती

रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह दोस्ती दोनों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुई और उन्होंने मिलकर बहुत सी खोजें की। उसी बीच रामानुजन की एक विशेष खोज की वजह से कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने उन्हें BA की उपाधि दी। इसके बाद वह रामानुजन को रॉयल सोसाइटी का फेलो बनाया गया। ऐसे समय में जब भारत गुलामी में जी रहा था तब एक अश्वेत व्यक्ति को रॉयल सोसायटी की सदस्यता मिलना एक बहुत बड़ी बात थी।

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रामानुजन को कौन सी बीमारी थी ?

कुछ समय के बाद इंग्लैंड में भी रामानुजन की तबीयत बहुत खराब हो गई और जांच कराने के बाद डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें टीवी हो गया है उस समय टीवी की बीमारी की कोई दवा नहीं होती थी। अंत में डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा। क्योंकि इंग्लैंड का मौसम उनकी तबीयत के लिए अच्छा नहीं था। लेकिन भारत लौटने पर भी स्वास्थ्य में रामानुजन का साथ नहीं दिया और हालत और गंभीर होती चली गई। आखिरकार अपना पूरा जीवन गणित को समर्पित करने के बाद 26 अप्रैल 1920 को 33 साल की उम्र में रामानुजन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

दोस्तों एक बात जान लीजिए जीवन लंबा हो या छोटा अगर आपको अपने आप पर विश्वास है अपने कार्यों के प्रति लगन है तो सफलता जरूर मिलेगी। मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है हर पहलू जिंदगी का इम्तिहान होता है डरने वालों को कुछ भी नहीं मिलता जिंदगी में लड़ने वालों की कदमों में जहां होता है। आपका बहुमूल्य समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद इस आर्टिक्ल को अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ शेयर करे, और आप हमारा मनोबल बढ़ा सकते हैं दोस्तों अगर आप इसी तरह की जनकारी जानना चाहते है तो कृपया हमारी साइट को bOOKmARK कर ले। “Srinivasa Ramanujan Biography in hindi – श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय” कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं धन्यवाद।

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