नमस्कार दोस्तों, देश में चारों तरफ आजादी के 76वे अमृत महोत्सव की तैयारी जोरों शोरों से चल रही है। इस साल का महोत्सव और भी ज्यादा खास हो गया है क्योंकि इस बार एक नया अभियान भी चल रहा है। हर घर तिरंगा अभियान के बारे में आपने जरूर सुना होगा। हमारे आज के तिरंगे का भी एक बहुत पुराना इतिहास रहा है वर्ष 1906 लेकर 1947 हमारे राष्ट्रीय ध्वज में काफी बदलाव आए हैं। अशोक चक्र वाले इस झंडे के राष्टीय ध्वज बनने की कहानी बहुत लम्बी है। आइए जानते है इस कहानी के बारे में इतिहासकार कपिल कुमार से।
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Indian National Flag History 1906 to 1947 in Hindi
हमारे आज के राष्टीय ध्वज की बड़ी लम्बी कहानी है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज में 1906 से लेकर 1947 तक बहुत बदलाव देखा गया है। आज जो तिरंगा हमें दिखता है वह पहले काफी अलग था। तिरंगे के इतिहास को लेकर को लेकर इतिहासकार कपिल कुमार ने बताया है की वर्तमान में जो हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज है उससे पहले कई बार ध्वज बदल चुका है। अशोक चक्र वाले इस झंडे के राष्ट्रीय ध्वज बनने की कहानी बहुत लंबी है और इस दौरान भारत के कई झंडे रह चुके है। आइए जानते हैं इसकी राष्टीय ध्वज के इतिहास के बारे में।
1857 की पहली क्रांति
इतिहासकार का कपिल कुमार बताते हैं कि 1857 में हमने पहला स्वतंत्रता संग्राम मनाया था और उस समय सबका अपना-अपना झंडा था लेकिन पहली बार क्रांतिकारियों ने एक झंडे को अपना झंडा बनाया। वह एक हरे रंग का झंडा था जिसके ऊपर कमल था और यह आजाद हिंदुस्तान की पहली लड़ाई में फहराया गया था। इसके बाद वर्ष 1906 में कोलकाता के पारसी बागान चौक पर तिरंगा फहराया गया था जोकि हरे पिले और लाल रंग से बना था और इसके बीच में वन्दे मातरम भी लिखा हुआ था।
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पेरिस में फहराया गया ध्वज
आगे कपिल कुमार बताते हुए कहा कि 1907 में मैडम कामा द्वारा भारतीय क्रांतिकारियों की मौजूदगी में पेरिस में तिरंगा फहराया गया था जिसमें 1906 वाले तिरंगे में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं था, लेकिन इसमें सबसे ऊपर लाल पट्टी का रंग केसरिया का और कमल की बजाय सात तारे थे जो सप्त ऋषि का प्रतीक थे।
इसके बाद आया तीसरा झंडा
कपिल ने आगे बताया कि साल 1917 में जब राजनीतिक संघर्ष में एक नया मोड़ आया था तब तीसरा झंडा अस्तित्व में आया। डॉक्टर एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक में घरेलू शासन आंदोलन के दौरान से ऐसे फहराया था। इस तिरंगे में पांच लाल और चार हरि क्षितिज पट्टियां थी इस तिरंगे से यह दिखाने की कोशिश की गई थी कि हमें स्वतंत्रता तो नहीं मिलेगी लेकिन स्वयं शासन का अधिकार जरूर मिला है।
इसके बाद आया बदलाव
इसके बाद साल 1921 में जब भारत देश की गुलामी से आजाद होने के कोशिश में लगा था उस वक्त इसे दो रंग का बनाया गया जिसमें लाल और हरा रंग मौजूद था। जिसके बाद गांधी जी ने सुझाव दिया था कि भारत के सभी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत दिखाने के लिए चलता हुआ चरखा होना चाहिए। इसके बाद इसमें चरखा भी जोड़ा गया।
झंडे में जोड़ा गया अशोक चक्र
आगे उन्होंने बताया कि 1931 में तिरंगे को केसरिया सफेद और हरे रंग के साथ, और मध्य में गांधीजी के चलते हुए चरखे के साथ में बनाया गया इसके बाद अशोक चक्र का सफर आता है। यह साल 1947 का था जिसमें सावरकर चरखे की कमेटी को एक टेलीग्राम भेजा था और उन्होंने कहा था कि तिरंगे के मध्य में अशोक चक्र होना चाहिए। इसके बाद आजाद भारत में ऐसे पहली बार फहराया गया था।