कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandits) कोट्स शायरी स्टेटस और कश्मीरी पंडित से जुड़े तमाम जानकारी हमारे आज के ब्लॉग में दिए गए है। सवाल यह उठता है कि कश्मीरी पंडित कौन थे या फिर कौन है। 19 जनवरी 1990 यह वह तारीख थी जब आजादी के बाद जवाहर टनल के उस पार लाखों लोग को दर्द सहना पड़ा और ना चाहते हुए भी टनल से उस पार से इस पार आना पड़ा।
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कश्मीरी पंडितो (Kashmiri Pandits) के साथ क्या हुआ था ?
जवाहर टनल वह रास्ता है जो जम्मू को कश्मीर से जोड़ता है और 1990 को य रास्ता किसी सरहद की तरह हो गया था। जिसकी मदद से लाखों कश्मीरी पंडित कश्मीर से अपनी जान बचाकर जम्मू के शरणार्थी कैंपों तक पहुंचे थे। किसी मुल्क में यह शायद पहली बार हुआ था। कश्मीरी पंडितो (Kashmiri Pandits) के साथ क्या हुआ था, अगर आप 100% सच जानना चाहते है तो आपको एक बार जरूर The Kashmir Files Movie देखनी चाहिए !
Kashmiri Pandits Quotes in Hindi
जब किसी मुल्क के निवासियों को अपना घर बार छोड़कर मजबूर होना पड़ा होगा। आखिर उस दिन ऐसा क्या हुआ था जिसने रातों रात कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। वह कौन लोग थे जिन्होंने कश्मीर में अल्कावाद की आग को बढ़ावा दिया था। ये कुछ ऐसे सवाल है जिनके बारे में जानना काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है। हाल ही में कश्मीरी फाइल एक फ़िल्म भी बनी है जोकि 1990 के इसी बड़े हादसे पर आधारित है।
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खैरियत ना पूछो उससे
वो मौत से लड़ कर आया है
अपने ही घर से निकाला गया,
मारा गया, जलील हुआ
खामोश खड़ी थी दुनिया
वो अपनों की लाशें बिना दफनाये आया है
हाल ना पूछो उससे
वो कश्मीर से भाग के आया है…दरवाजे पे पर्ची लगाके
शाम तक का वक्त दिया
लुट गई इज्ज़त मां बेटियों की
और तुमने क्या किया
हाथों मे क्या चुड़ियां रही थी
जो लड़ ना सके थे घाटी में
ज़िन्दा रहके क्या ही उखाड़ा
जो भाग आए अपनी माटी से
जेहादियों से ना लड़ पाए
आखिर ऐसा भी क्या खंडित थे
कान्हा के भी ना हो सके
भला तुम भी कोई पंडित थे
Kashmiri Pandits Status in Hindi
हालांकि इससे पहले भी 2020 में एक और ऐसी फिल्म बनी थी लेकिन दर्शकों का कहना था कि कश्मीरी पंडितों के बारे में इस फिल्म में दस परसेंट भी नहीं दिखाया गया था। कश्मीरी फाइल्स में मुख्य भूमिका में अनुपम खेर नजर आ रहे हैं जिन्होंने आज से कई साल पहले एक शो के दौरान कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के बारे में काफी कुछ बताया था।
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बहर हमारी मीर रही है
ग़ज़लें अपनी तीर रही है
सीने को फाड़ के रख दे जो
वो जंगी शमशीर रही है
मौत हमें पकड़ेगी कैसे
जाँ अपनी जागीर रही है
बेघर पंडित रोता हरदम
नम घाटी , कश्मीर रही है
पंडित होना पाप हो जैसे
हालत बस गम्भीर रही है
पंडित को जीने दो साहब
सारंग की तहरीर रही है
Kashmiri Pandits Shayari in Hindi
इन सभी जानकारियों के साथ यह जानना भी जरूरी है कि आज हम आपके लिए क्या कुछ लेकर आए है। हमारी आज की जानकारी में कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandits) से जुड़े कोट्स शायरी स्टेटस और दर्दनाक कश्मीरी पंडित शायरी दी गई है। 1990 की बात करें तो ऐसा दर्दनाक माहौल देखने को मिला था जिसका शिकार ना केवल पुरुष बल्कि मासूम छोटे बच्चे और महिलाएं भी बनी थी।
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वो, मैं बरसो से राह तके बैठा हूं, 1990 से जल रहा, मैं कश्मीरी पंडितो का घर जो ठहरा हूं
Zara socho Bharat wasio koi jab aap Ko app Kay ghar say nilalahe to kaise lage gaa aise hua Hei Kashmiri Hindu kay sath Kashmiri Hindu Genocide 1990s
मैं उस वादी की बेटी हूँ!
सही सुना गद्दारों तुमने,
मैं उसी वादी की बेटी हूँ,
छाया आतंक का साया जिसपे,
मैं उस कश्मीर की बेटी हूँ!
मत सोचों मैं भूल गई,
उन निर्मम अत्याचारों को,
मैं कैसे जाऊँ भूल कभी
वो प्यारी मेरी घाटी को!
कश्मीरी पंडितो पर शायरी स्टेटस कविता हिंदी में
ख़ामोश सड़क पर एक पत्थर होगा चुपचाप ,
कोई ठेस जब जूतों से खाये तो कैसे न छटपटाये,
ये अलबत्ता इंसानी पैरों में लगी ठोकर सी ही चोट है ,
जो पत्थर को भागते इंसान से और इंसान को रुके हुए पत्थर से लगी है !
कश्मीरी पंडितो के दर्द को बया करती ये कविता
इनकी बेबस सिसकियां
बाट जोह रही हैं अभी तक
आएगा कोई लौटकर
देगा फिर दस्तक़ दरवाज़े पर
झूम झूम कर चिनारों के झोंकों से
इस्तक़बाल करेंगी ये बुढाती खिड़कियां।. . .
इन खिड़कियों के किनारे से गुजरती
सिंधु, चिनाब, झेलम
कितनी ही रूहानी यादों,
दर्दों, अश्कों, मुस्कानों को
बहाकर समंदर में गवां चुकी हैं
मगर ये खिड़कियां
समेटे हुए है अभी तक
दर्द -ए- दास्तां।. . .
चिनार की वह खिड़की
अधमरे दरवाज़े के ऊपर
रूखी दीवार में टंगी है
अभी तक विरहणी सी
कुछ पुरानी धुंधली, अधजली
चीखती, चिल्लाती, बेबस आँखों की
बेबसियों को समेटे हुए।
चिनार के उदास झोंकों से
कभी थरथराने लगती हैं
तो झरता है बेबस आहों
और डूबती आँखों का उदास संगीत
जो अब भी गुम और नम है
इनकी चरमराहट में।
यानी कि इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस दिन कितना कुछ सहना पड़ा था। कई जगह लाशों के ढेर देखने को मिले थे। बताना चाहते हैं की इस कहानी का सबसे अहम किरदार था फारूक अब्दुल्ला जिन्होंने अपने पिता के मौत के बाद कश्मीर में मुख्यमंत्री की शपथ ली। 1994 में फारूक अब्दुल्ला और इंदिरा गांधी की कड़वाहट काफी ज्यादा बढ़ गई थी। इस कड़वाहट का नतीजा था एक कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandits) का सत्ता परिवर्तन। इस सत्ता परिवर्तन की वजह से कश्मीर में धरना प्रदर्शन हुए।
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